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Sunday, August 2, 2020

व्यक्ति के दैनिक स्वच्छता के महत्व से आप क्या समझते हैं? इसका इंजिनियरिंग क्षेत्र से क्या सम्बन्ध है?

आरोग्य जीवन व्यतीत करने और दीर्घायु पाने के लिए मानव जीवन में स्वच्छता (Sanitation) का बड़ा महत्व है।
स्वच्छता का क्षेत्र अपने शरीर की सफाई तक सीमित नहीं है। 
अपने आसपास के वातावरण को भी स्वच्छ रखना उतना ही आवश्यक है। जितना अपने शरीर की सफाई।
अनेक अकस्मात  फैलने वाले रोगों का कारण दूषित तथा गंदे वातावरण में जीवन व्यतीत करना है। 
जहां दूषित जल का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 
 वहां आसपास की गंदगी से उत्पन्न दूषित गैस  तथा मल मूत्र पर पनपने वाली मक्खियां कीटाणु भी मानव शरीर को भयानक रोगों का शिकार बना कर छोड़ते हैं।
आज का साधारण मनुष्य जीवन स्तर को प्राप्त करने के लिए गांव छोड़कर शहरों की ओर भाग रहा है।
जनसंख्या अत्यधिक बढ़ जाने से शहर अपनी सीमाओं से बाहर आ गए हैं। 
जिसके कारण नागरिकों को शुद्ध पानी और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। और अच्छे तथा सुंदर कहलाने वाले वाले नगर गंदी बस्तियों (Slums)  में परिवर्तित हो रहे हैं।
चित्र -स्लम,‌गन्दी बस्तियो
 इन गंदी बस्तियों के दूषित वातावरण में रहने से मनुष्य को आधुनिक जीवन स्तर से वंचित हो गया है। उल्टा मनुष्य का अपना विकास रूक गया है।
 शुद्ध पानी तथा स्वच्छ वातावरण में सांस लेने के लिए इन गंदी बस्तियों से कहीं दूर भागे जाने के लिए भी तैयार हैं। 
इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए आज स्वच्छता इंजीनियरिंग (Sanitation Engineering) का महत्व बहुत बढ़ गया है।
 स्वच्छता प्रबंधन के लिए राज्यों में जन स्वास्थ्य इंजिनियरिंग विभाग(Public Health Engineering Department) स्थापित है। जो जल आपूर्ति के साथ-साथ स्वच्छता प्रबंधन(Sanitation Management) तथा सीवेज उपचार प्लांट(Sewage Treatment Plant)  के निर्माण (Construction) और अनुरक्षण (Maintenance) का कार्य करता है।
स्वच्छता अभियांतिकी (Sanitation Engineering) मे वाहित मल(Sewage) का भूमिगत नालियों (Sewers)  द्वारा नगर (City) से बाहर ले जाकर आधुनिक विधियों से निपटारन/समापन(Disposal) किया जाता है।

स्वच्छता प्रणाली के चरण (Stages of Sanitation)
स्वच्छता प्रणाली के निम्न 3 चरण होते हैं। जो निम्नलिखित हैं।
(1)अपशिष्ट संग्रह(Collection of Refuse) :-इसके अंतर्गत नगर के ठोस,  अध्दठोस व द्रव अपशिष्ट पदार्थों को अलग-अलग इकट्ठा किया जाता है।
(2) अपशिष्ट परिवहन(Collection of Refuse):- शुष्क अपशिष्ट ठेलो या ट्रैक्टरों द्वारा शहर से बाहर लाया जाता है। वाहित मल को भी भूमिगत नालियों द्वारा शहर से बाहर ले जाया जाता है।
(3) अपशिष्ट का निपटान(Disposal of Refuse):- 
ठोस अपशिष्ट पदार्थों व मल- जल का अलग-अलग ढंग से निपटान किया जाता है। कचरे को गड्ढों में भर या दबा दिया जाता है।
 सीवेज(Sewage) को संभव होने पर थोड़ा बहुत उपचार करक समीपवर्ती किसी नदी नाले में डाल दिया जाता है। जहां साधन उपलब्ध है। वहां पर
सीवेज का पूर्ण उपचार व समापन किया जाता है।

सफाई पद्धतियां (System of Sanitation)ह
अपशिष्ट पदार्थों को संग्रह करके निपटान की दो पद्धति अपनाई जाती हैं।
1.मल वहन या शुष्क पद्धति
 (Conservation System or Dry System)
2.जल वाहन पद्धति
(Water Carriage System),

(1) मल वहन पध्दति 
Conservation System or Dry System
मल वहन पद्धति में अलग-अलग प्रकार के अपशिष्ट पदार्थों को अलग-अलग ढंग से इकट्ठा किया जाता है। और उनका अलग-अलग समापन किया जाता है।
(I) सूखा कूड़ा (Garbage):-
सड़कों और गलियों में उचित दूरी पर कूड़ा पात्र स्थापित किए जाते हैं।जहां पर लोग घरों का कचरा लाकर डाल देते हैं। दिन में एक या दो बार इस कूड़ा करकट को इकट्ठा करके ठेलागाड़ी या ट्रकों द्वारा नगर से बाहर ले जाया जाता है।
 और इस को जला दिया जाता है। या जमीन में खाई या गड्ढों को खोदकर दबा दिया जाता है।
 गड्ढौ के भर जाने पर इसे अच्छी मिट्टी से ढक दिया जाता है।
(II) वर्षा जल:- गन्दा पानी और वर्षा जल खुली नालियों द्वारा  शहर से बाहर लेकर जाया जाता है। और किसी नदी नाले या प्राकृतिक गड्ढे में छोड़ दिया जाता है। यदि ऐसा नहीं किया जा सकता है तो घरों से बाहर होकर सोक पिट् (Soak Pit) बनाकर उसमें डाल दिया जाता है।
(III)मल-मूत्र (Night Soil):- मल मूत्र के लिए सुखी लैट्रिन में बात रखे जाते हैं या मल टोकरी में या पात्रों में कैद करके शहर से बाहर ले जाकर खाई में डाल दिया जाता है खाई के मर जाने पर इसे मिट्टी से ढक दिया जाता है और कुछ समय के बाद खाद में परिवर्तित हो जाता है।
A.) Merits of Conservancy System
१.इस पद्धति में सुखी लैट्रिन बनाने में कम खर्च आता है और कम पानी की आवश्यकता होती है गंदा पानी सामान खुली नालियों में बहता है
२.मानव मल खाद के रूप में खेती के लिए काम आता है।
३. यह एक सस्ती प्रक्रिया है।
B.) Demerits of Conservancy System
१.) यह एक अस्वास्थ्य कर प्रणाली है मल मूत्र के गलने चढ़ने से दुर्गंध उत्पन्न होती है जिसे वातावरण दूषित हो जाता है और कई बीमारियां फैलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
२.) मल गंदगी से भरी बैलगाड़ी और ठेले जब शहर की संकरी गलियों सड़कों से निकलते हैं तो लोगों को परेशानी होती है
३.) इस पद्धति में मल मूत्र शौचालयों और मल कुंडों में पड़ा सड़ता रहता है। जिससे दुर्गंध पैदा होती है। और गंदगी फैलती हैं। और मक्खियों का जमा होता है। जिससे वातावरण दूषित हो जाता है।
४.) यह सफाई पद्धति एक विशेष वर्ग के लोगों पर थोपी गई है। जिसे मेसतर या भंगी कहते हैं।
 वह किसी भी समय झाड़ू पट्टी छोड़कर हड़ताल कर सकते हैं। अथवा इस कार्य को मना कर सकते हैं। पुराने समय में यह पद्धति उपयोग में लाई जाती थी किंतु अब ऐसी पद्धति का समाज को बहिष्कार करना चाहिए। जिससे समाज में सामाजिक अन्याय उत्पन्न होता है।
 आज के आधुनिक युग में एक मनुष्य का मल दूसरे आदमी द्वारा उठाया जाए, यह एक घोर सामाजिक अन्याय है। यह पद्धति बनाए रखना आज के सभ्य समाज पर एक कलंक है।

(2) जल वहन पद्धति
(Water Carriage System)
इस पद्धति में मल मूत्र को पानी द्वारा भूमिगत नालियों में बहा कर नगर से बाहर ले जाया जाता है और वैज्ञानिक अथवा तकनीकी द्वारा इसका समापन या निपटान किया जाता है। क्योंकि इस पद्धति में पानी की मुख्य भूमिका है।
 इसलिए इसे जल वहन पद्धति का जाता है।
 मल बहाने के लिए पानी सबसे सस्ता तथा हर जगह प्राप्त होने वाला स्रोत है।
इसमें घरों के अंदर फल्श लैटरीन (Water Closet) बनाई जाती है। जिसमें मल बहाने के लिए पानी की टंकी( Flushing Cistern) लगी रहती है। प्रयोग के बाद चैन खींचने पर फ्लशिंग टंकी से 10 से 15 लीटर पानी तेजी से मल पात्र में घुसता है। और मल इत्यादि को बहा कर सिविर में ले जाता है। सीवर में बहता हुआ यह गंदा पानी शहर से बाहर चला जाता है।
वाहित मल या सीवेज जो इस तरह का बनाया जाता है। इसमें पानी की सबसे ज्यादा मात्रा 99.99% होती है। और ठोस पदार्थ केवल 0.1% ही होते हैं। यह बड़ी आसानी से ढालूदार सीवर में बह जाता है।



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