Saturday, August 8, 2020

एक पालटेक्निक में छात्रावास तथा स्टाफ कॉलोनी के निवासियों की कुल संख्या 1000 व्यक्ति है। तथा प्रति व्यक्ति 135 लीटर पानी उपलब्ध कराया गया है। जिसका 80% भाग अपशिष्ट जल (Waste water) के रूप में बाहर आता है। संस्था के लिए I.S. 1742 में दी गई तालिका की सहायता से उचित व्यास की सीवर का अभिकल्पन करें?

पालिटेक्निक छात्रावास और स्टाफ कालोनी में कुल जल सप्लाई=1000×135
                       =1,35,000 लीटर प्रतिदिन
चित्र:- Sewer Line 
जिसका 80%अपशिष्ट जल (Waste water) के रूप में बाहर सीवर लाईन में आ रहा है।
(प्रश्न अनुसार)
           =1,35,000 × (80/100) लीटर प्रतिदिन
            =108000 लीटर प्रतिदिन
     108000/(24×60×60)
                =1.25 लीटर प्रति सेकंड
सीवेज के उतार चढ़ाव को देखते हुए सीवर की क्षमता 3 गुना अधिक रखी जाती है।
सीवर की क्षमता=1.250 × 3
                      =3.750 लीटर/सेकेंड
                      =0.003750 घन मीटर प्रति सेकंड
चूंकि सीवर का 2/3 भाग से अधिक भरा हुआ नहीं प्रवाहित होनी चाहिए।
अतः सीवर की कुल क्षमता
                =0.00375 ×1.5
                 =0.005625 घन मीटर प्रति सेकंड
                   =0.005625 × 60
                  =0.3375 घन मीटर प्रति मिनट
 
               Table.13.4-I.S.1742

 अतः table 13.4( I.S.1742) के अनुसार 150 मिमी व्यास की सीवर पाईप (Sewer Pipe) उपयुक्त रहेगा, जिसमें 0.75 मीटर प्रति सेकंड के वेग पर Sewage प्रवाहित हो सकेगा।
सीवर का ढाल 1 IN 100 दिया जाएगा।

एक कॉलोनी की कुल जनसंख्या 2000 है। तथा प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर पानी सप्लाई किया जाता है। कालोनी के लिए उचित व्यास की सीवर लाइन का अभिकल्पन I.S. 1742 के आधार पर निर्धारित किजिए।

कुल जल सप्लाई=2000×135
                       =2,70,000 लीटर प्रतिदिन
2,70,000/(24×60×60)=3.124 लीटर प्रति सेकंड
सीवेज के उतार चढ़ाव को देखते हुए सीवर की क्षमता 3 गुना अधिक रखी जाती है।
सीवर की क्षमता=3.9124 × 3
                       =9.372 लीटर/सेकेंड
                        =0.00938 घन मीटर प्रति सेकंड
चूंकि सीवर का 2/3 भाग से अधिक भरा हुआ नहीं प्रवाहित होनी चाहिए।
अतः सीवर की कुल क्षमता
                =0.00938×1.5
                 =0.01407 घन मीटर प्रति सेकंड
                   =0.01407 × 60
                  =0.845 घन मीटर प्रति मिनट
 अतः table 13.4( I.S.1742) के अनुसार 230 मिमी व्यास की सीवर पाईप (Sewer Pipe) उपयुक्त रहेगा, जिसमें 0.75 मीटर प्रति सेकंड के वेग पर Sewage प्रवाहित हो सकेगा।
सीवर का ढाल 1in 175 दिया जाएगा।


What is Sewerage System? सीवरेज प्रणाली क्या है?

इस पद्धति में सीवेज को घरों से भूमिगत नालियों (Under Ground Drains) द्वारा शहरों के बाहर निष्कासित किया जाता है।
शहरों के घरों के अन्दर Flush Laterine बनाई जाती है।
Flush Laterine मे Night Soil को सबसे ज्यादा पानी की मात्रा डाल कर सीवर  (Sewers) में बहा दिया जाता है।
घरों के अंदर Flush Laterine बनाई जाती है। जिसमें Night Soil को बहाने के लिए पानी की टंकी (Flushing Cistern) लगी होती है।
उपयोग करने के बाद  चैन खींचने पर Flushing Cistern से 10 से 15 लीटर पानी तेजी से मल पात्र में घुसता है। और मल आदि को बहाकर सीवर में ले जाता है।
सीवर में बहता यह द्रव शहर से बाहर निकल जाता है।
सीवेज में पानी की मात्रा 99.9% और ठोस पदार्थ केवल 0.1% होता है।
Flush Laterine Sewage प्रवाह होता हुआ घरों से बाहर आकर नगरपालिका की Sewer Line में आकर गिरता है।
सीवर लाइन द्वारा बहता हुआ घरों से बाहर आकर शहर से बाहर निकल जाता है।
Sewer Line में भूमि गत कुछ उचित व्यास के पाइप बिछाए जाते हैं। 
चित्र-Sewer Line 
Sewer Line को Hydraulic Theory के अनुसार आवश्यक Longitudinal Slope दिया जाता है। यह पाईप  Sewer कहलाते हैं।
और इस पूरे व्यवस्था को Sewerage System‌ कहते हैं।
निरीक्षण और अनुरक्षण के लिए Sewer Line पर उचित दूरी पर Manhole बनाई जाती है। जिनके ऊपर ढलवां लोहा या कंक्रीट का भारी ढ़क्कन रखा जाता है।
जब कभी Sewer की सफाई की आवश्यकता पड़ती है। यह ढ़क्कन उठाकर Man Hole से नीचे Sewer के तली तक सफाई कर्मचारी आसानी से पहुंच सकते हैं।
सड़कों और अन्य स्थानों से Storm Water एवम अन्य जल को Sewer Line में डालने के लिए सड़क के किनारे पर Footpath से लगा उचित दूरी पर सड़क छिद्र (Street Inlets) बनाया जाता है।
Sewer में Sewage के गलने सड़ने तथा वियोजित होकर कई तरह के प्रदूषित गैसों जैसे हाईड्रोजन सल्फाइड, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, इत्यादि उत्पन्न होती है।
यह सभी विषैले और हानिकारक गैसे होती है।
इन गैसों को सीवर से बाहर निकालने के लिए Sewer Line पर उचित दूरी पर Ventilation Shaft लगाया जाता है। Ventilation Shaft  से निकलकर यह विषैले गैसे वातावरण में चली जाती है।
Sewage को शहर से बाहर लाकर इसके उपचार (Treatment) तथा Disposal की व्यवस्था किया जाता है।
जहां पर यह कार्य सम्पन्न होता है। उसे Treatment works कहते हैं।

Sweage Disposal method
सीवेज समापन की दो विधियां हैं।
१.) प्राकृतिक समापन विधि 
Natural Disposal method
प्राकृतिक समापन विधि में Sewage को शहर के समीपवर्ती क्षेत्र में बहते हुए किसी नदी- नाले में प्रवाहित कर दिया जाता है। किन्तु इसके लिए नदी में हर मौसम में पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध होने चाहिए।जिससे सीवेज का Dilution आसानी से हो सके।कुछ दूर बहने पर नदी का जल Self purification process से पुनः स्वच्छ हो जाता है।
२.) कृत्रिम समापन विधि
Artificial Disposal Method
इस विधि में शहर के बाहर उपजाऊ भूमि उपलब्ध होने पर सीवेज जल द्वारा कृषि कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता है। क्योंकि सीवेज में खाद (Manures) के गुण विद्यमान होते हैं।
इस प्रकार सीवेज के उपयोग को सीवेज खेती (Sewage Farming) कहते हैं।


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Tuesday, August 4, 2020

Construction of Bituminous Pavement or Roads

The Bituminous Pavement or Roads are commonly adopted as wearing course.

In the Pavement a wide range of Construction techniques are used.
Stage development is possible in the case of  Bituminous Roads, depending on the traffic demands.

The process of Construction of  Bituminous Roads is control of the consistent Viscosity of the Bituminous aggregate mixture during mixing and Compaction operation.
The following Construction techniques used in bituminous  Roads construction are given.
(I)Interface treatment
the surface of existing payment layer is to be cleaned need to remove dust and direct and a thin layer of bituminour binder is to be sprinkle before the construction of any kind of bituminous layer over this surface.
This treatment is necessary to provide the bond between the old and the new layer.
Types of interface Treatment are given below.
(a) Prime Coat:- 
Bituminous prime coat is the first application of a low viscosity liquid bituminous material over an existing porous or absorbent Pavement surface like WBM base course.

The main objective of priming is to plug in the capillary voids of the porous surface and to bond the loose mineral particles on the existing surface using a binder materials of minimum viscosity which can infiltrate into the surface porous.
(b) Tack Coat:-
Bituminous tack coat is the application of Bituminous material over an existing Pavement surface which is relatively impervious like an existing Bituminous surface or Cement Concrete pavement or previous surface similar the WBM which has already been treated by a Prime Coat.
Bituminous material of higher viscosity similar hot bitumen is used and in cold State, bituminous emulsion may also be applied.
(II) Surface Dressing
Bituminous surface dressing is provided over and existing pavment to serve like thin wearing coat.
To water proof the Pavement surface and to prevent infiltration of surface water.
It provides dust free pavment surface in dry weather and mud free pavment during Rainy season.
(III) Seal Coat
It is generally recommended as a top coat over determinate bituminous Roads which are not impervious.
It is providing to develop resistance texture.
The main function of seal coat are seal the surfacing against the action of water. 
(IV) Access Macadam
Bituminous infiltrate macadam is used as a base course.
(V) Built-up Sprinkle Grouting
Built-up Sprinkle Grouting consists of two layer composite Construction of Compacted crushed aggregate with application of bituminous binder after each layer for bonding.
The total Compacted thickness of this layer is 75 mm.
(VI) Premixed Operation
In this method the aggregate and bituminous binder are mixed throughly before spreading and compacting.

 

स्वच्छता परियोजना (Sanitary Project)

स्वच्छता परियोजना (Sanitary Project)
शहरों के लिए पेय जल आपूर्ति परियोजना
( Water Supply Project) बनाने के बाद स्वच्छता परियोजना (Sanitary Project) की भी आवश्यकता पड़ती है।
 जिससे शहर को पेयजल सप्लाई (Water Supply) किया गया स्वच्छ जल बाद में, मल जल तथा दूषित पानी के रूप में घरों से बाहर आ रहा है। उसका भी वैज्ञानिक तरीके से समापन हो सके।
स्वच्छता परियोजना तैयार करते समय निम्न बिंदुओं पर विचार किया जाना चाहिए।
(१). शहर की जनसंख्या(Population)वर्तमान तथा अभिकल्पन काल के अंत में ज्ञात कर लेना चाहिए।
(नोट:-परियोजना के लिए डिजाइन पीरियड 30 से 40 वर्ष लेना उचित रहता है।)
(२). शहर के विकास की दिशा
(३). सीवेज तथा अपशिष्ट द्रव के स्रोत
(४). सीवेज की मात्रा(Quantity of Sewage)
(५). सीवेज की गुणवत्ता(Quality of Sewage)
(६). सीवेज समापन की वर्तमान विधि, यदि कोई उपलब्ध हो।
(७). क्षेत्र में वर्षा की तीव्रता तथा बर्षा-जल की मात्रा।
(८). क्षेत्र की स्थलाकृति(Topography) तथा समापन स्थल(Disposal Site) का चयन।
(९). सीवेज समापन की प्रस्तावित विधियां(Proposed method)।
(१०). परियोजना के लिए वित्तीय स्तोत्र(Economical Source)

स्वच्छता परियोजना की रिपोर्ट 
(Report of Sanitation Project)
स्वच्छता परियोजना की रिपोर्ट में परियोजना सम्बंधित निम्नलिखित आवश्यक तथ्य पर विचार करने चाहिए।
(१). सीवेज निपटान/समापन की वर्तमान स्थिति तथा परियोजना विशेष की आवश्यकता।
(२). सीवेज की मात्रा स्रोत समापन विधि समापन मानक इत्यादि।
(३) सीवर सरेखण, ढाल, विन्यास तथा संबंधित निर्माण की रूपरेखा।
(४). पंप उपकरण, संयंत्र प्लांट व मशीनरी की आवश्यकता तथा प्राप्ति स्रोत।
(५).परिजनों के लिए कुशल/अकुशल कर्मचारियों की उपलब्धि तथा निर्माण प्रक्रिया।
(६).कुल जनसंख्या, जिससे परियोजना से लाभ प्राप्त होगा।
(७). परियोजना पर कुल आय व स्रोत तथा वित्तीय साधन।
(८).परियोजना के लिए भूमि का अधिग्रहण तथा मुआवजे की धनराशि।
(९).परियोजना के लिए पूरा होने वाला अवधि समय।
(१०). परियोजना की सार्थकता
(११). अन्य सूचना जो परियोजना से संबंधित हो।



Sunday, August 2, 2020

व्यक्ति के दैनिक स्वच्छता के महत्व से आप क्या समझते हैं? इसका इंजिनियरिंग क्षेत्र से क्या सम्बन्ध है?

आरोग्य जीवन व्यतीत करने और दीर्घायु पाने के लिए मानव जीवन में स्वच्छता (Sanitation) का बड़ा महत्व है।
स्वच्छता का क्षेत्र अपने शरीर की सफाई तक सीमित नहीं है। 
अपने आसपास के वातावरण को भी स्वच्छ रखना उतना ही आवश्यक है। जितना अपने शरीर की सफाई।
अनेक अकस्मात  फैलने वाले रोगों का कारण दूषित तथा गंदे वातावरण में जीवन व्यतीत करना है। 
जहां दूषित जल का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 
 वहां आसपास की गंदगी से उत्पन्न दूषित गैस  तथा मल मूत्र पर पनपने वाली मक्खियां कीटाणु भी मानव शरीर को भयानक रोगों का शिकार बना कर छोड़ते हैं।
आज का साधारण मनुष्य जीवन स्तर को प्राप्त करने के लिए गांव छोड़कर शहरों की ओर भाग रहा है।
जनसंख्या अत्यधिक बढ़ जाने से शहर अपनी सीमाओं से बाहर आ गए हैं। 
जिसके कारण नागरिकों को शुद्ध पानी और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। और अच्छे तथा सुंदर कहलाने वाले वाले नगर गंदी बस्तियों (Slums)  में परिवर्तित हो रहे हैं।
चित्र -स्लम,‌गन्दी बस्तियो
 इन गंदी बस्तियों के दूषित वातावरण में रहने से मनुष्य को आधुनिक जीवन स्तर से वंचित हो गया है। उल्टा मनुष्य का अपना विकास रूक गया है।
 शुद्ध पानी तथा स्वच्छ वातावरण में सांस लेने के लिए इन गंदी बस्तियों से कहीं दूर भागे जाने के लिए भी तैयार हैं। 
इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए आज स्वच्छता इंजीनियरिंग (Sanitation Engineering) का महत्व बहुत बढ़ गया है।
 स्वच्छता प्रबंधन के लिए राज्यों में जन स्वास्थ्य इंजिनियरिंग विभाग(Public Health Engineering Department) स्थापित है। जो जल आपूर्ति के साथ-साथ स्वच्छता प्रबंधन(Sanitation Management) तथा सीवेज उपचार प्लांट(Sewage Treatment Plant)  के निर्माण (Construction) और अनुरक्षण (Maintenance) का कार्य करता है।
स्वच्छता अभियांतिकी (Sanitation Engineering) मे वाहित मल(Sewage) का भूमिगत नालियों (Sewers)  द्वारा नगर (City) से बाहर ले जाकर आधुनिक विधियों से निपटारन/समापन(Disposal) किया जाता है।

स्वच्छता प्रणाली के चरण (Stages of Sanitation)
स्वच्छता प्रणाली के निम्न 3 चरण होते हैं। जो निम्नलिखित हैं।
(1)अपशिष्ट संग्रह(Collection of Refuse) :-इसके अंतर्गत नगर के ठोस,  अध्दठोस व द्रव अपशिष्ट पदार्थों को अलग-अलग इकट्ठा किया जाता है।
(2) अपशिष्ट परिवहन(Collection of Refuse):- शुष्क अपशिष्ट ठेलो या ट्रैक्टरों द्वारा शहर से बाहर लाया जाता है। वाहित मल को भी भूमिगत नालियों द्वारा शहर से बाहर ले जाया जाता है।
(3) अपशिष्ट का निपटान(Disposal of Refuse):- 
ठोस अपशिष्ट पदार्थों व मल- जल का अलग-अलग ढंग से निपटान किया जाता है। कचरे को गड्ढों में भर या दबा दिया जाता है।
 सीवेज(Sewage) को संभव होने पर थोड़ा बहुत उपचार करक समीपवर्ती किसी नदी नाले में डाल दिया जाता है। जहां साधन उपलब्ध है। वहां पर
सीवेज का पूर्ण उपचार व समापन किया जाता है।

सफाई पद्धतियां (System of Sanitation)ह
अपशिष्ट पदार्थों को संग्रह करके निपटान की दो पद्धति अपनाई जाती हैं।
1.मल वहन या शुष्क पद्धति
 (Conservation System or Dry System)
2.जल वाहन पद्धति
(Water Carriage System),

(1) मल वहन पध्दति 
Conservation System or Dry System
मल वहन पद्धति में अलग-अलग प्रकार के अपशिष्ट पदार्थों को अलग-अलग ढंग से इकट्ठा किया जाता है। और उनका अलग-अलग समापन किया जाता है।
(I) सूखा कूड़ा (Garbage):-
सड़कों और गलियों में उचित दूरी पर कूड़ा पात्र स्थापित किए जाते हैं।जहां पर लोग घरों का कचरा लाकर डाल देते हैं। दिन में एक या दो बार इस कूड़ा करकट को इकट्ठा करके ठेलागाड़ी या ट्रकों द्वारा नगर से बाहर ले जाया जाता है।
 और इस को जला दिया जाता है। या जमीन में खाई या गड्ढों को खोदकर दबा दिया जाता है।
 गड्ढौ के भर जाने पर इसे अच्छी मिट्टी से ढक दिया जाता है।
(II) वर्षा जल:- गन्दा पानी और वर्षा जल खुली नालियों द्वारा  शहर से बाहर लेकर जाया जाता है। और किसी नदी नाले या प्राकृतिक गड्ढे में छोड़ दिया जाता है। यदि ऐसा नहीं किया जा सकता है तो घरों से बाहर होकर सोक पिट् (Soak Pit) बनाकर उसमें डाल दिया जाता है।
(III)मल-मूत्र (Night Soil):- मल मूत्र के लिए सुखी लैट्रिन में बात रखे जाते हैं या मल टोकरी में या पात्रों में कैद करके शहर से बाहर ले जाकर खाई में डाल दिया जाता है खाई के मर जाने पर इसे मिट्टी से ढक दिया जाता है और कुछ समय के बाद खाद में परिवर्तित हो जाता है।
A.) Merits of Conservancy System
१.इस पद्धति में सुखी लैट्रिन बनाने में कम खर्च आता है और कम पानी की आवश्यकता होती है गंदा पानी सामान खुली नालियों में बहता है
२.मानव मल खाद के रूप में खेती के लिए काम आता है।
३. यह एक सस्ती प्रक्रिया है।
B.) Demerits of Conservancy System
१.) यह एक अस्वास्थ्य कर प्रणाली है मल मूत्र के गलने चढ़ने से दुर्गंध उत्पन्न होती है जिसे वातावरण दूषित हो जाता है और कई बीमारियां फैलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
२.) मल गंदगी से भरी बैलगाड़ी और ठेले जब शहर की संकरी गलियों सड़कों से निकलते हैं तो लोगों को परेशानी होती है
३.) इस पद्धति में मल मूत्र शौचालयों और मल कुंडों में पड़ा सड़ता रहता है। जिससे दुर्गंध पैदा होती है। और गंदगी फैलती हैं। और मक्खियों का जमा होता है। जिससे वातावरण दूषित हो जाता है।
४.) यह सफाई पद्धति एक विशेष वर्ग के लोगों पर थोपी गई है। जिसे मेसतर या भंगी कहते हैं।
 वह किसी भी समय झाड़ू पट्टी छोड़कर हड़ताल कर सकते हैं। अथवा इस कार्य को मना कर सकते हैं। पुराने समय में यह पद्धति उपयोग में लाई जाती थी किंतु अब ऐसी पद्धति का समाज को बहिष्कार करना चाहिए। जिससे समाज में सामाजिक अन्याय उत्पन्न होता है।
 आज के आधुनिक युग में एक मनुष्य का मल दूसरे आदमी द्वारा उठाया जाए, यह एक घोर सामाजिक अन्याय है। यह पद्धति बनाए रखना आज के सभ्य समाज पर एक कलंक है।

(2) जल वहन पद्धति
(Water Carriage System)
इस पद्धति में मल मूत्र को पानी द्वारा भूमिगत नालियों में बहा कर नगर से बाहर ले जाया जाता है और वैज्ञानिक अथवा तकनीकी द्वारा इसका समापन या निपटान किया जाता है। क्योंकि इस पद्धति में पानी की मुख्य भूमिका है।
 इसलिए इसे जल वहन पद्धति का जाता है।
 मल बहाने के लिए पानी सबसे सस्ता तथा हर जगह प्राप्त होने वाला स्रोत है।
इसमें घरों के अंदर फल्श लैटरीन (Water Closet) बनाई जाती है। जिसमें मल बहाने के लिए पानी की टंकी( Flushing Cistern) लगी रहती है। प्रयोग के बाद चैन खींचने पर फ्लशिंग टंकी से 10 से 15 लीटर पानी तेजी से मल पात्र में घुसता है। और मल इत्यादि को बहा कर सिविर में ले जाता है। सीवर में बहता हुआ यह गंदा पानी शहर से बाहर चला जाता है।
वाहित मल या सीवेज जो इस तरह का बनाया जाता है। इसमें पानी की सबसे ज्यादा मात्रा 99.99% होती है। और ठोस पदार्थ केवल 0.1% ही होते हैं। यह बड़ी आसानी से ढालूदार सीवर में बह जाता है।



Wednesday, July 29, 2020

What is Method of Construction of Gravel Roads?

Construction of Gravel Roads
Gravel roads are considered superior to Earthen Roads as they can carry heavier traffic.

this type of road can take about 100 tonnes of Pneumatic tyred vehicle or 60 tonnes of iron tyred vehicles per day per lane. 
the camber provided on this type of road is between 1 in 25 and 1 in 30.

Two types of Construction methods are given below.

(I) Feather Edge Type
it is Constructed over the Subgrade with varying thickness, so as to obtain the desired cross slope for the pavement surface.
(II) Trench Type
in the trench type, the Subgrade is prepared by excavating a shallow trench. 
Figure:-(1) Types of gravel road sections

The Construction of Gravel Roads may be divided into following steps.
(I) Construction Material
Hard variety of crushed stone or gravel of specified gradation is used. 
Rounded stones and river gravel are not preferable as there is poor interlocking. 
Gravel to be used for the construction is stacked along the sides of proposed road.
(II) Alignment Location
the central line and Road ages are marked on the ground along the alignment with the help of reference pegs.
(III) Pavement Structure
the layer is rolled using smooth wheel rollers starting from the edges and proceeding towards the centre with an overlap of atleast half the width of roller in the longitudinal direction.
 (IV) Opening to Road Traffic 
A few days after the final rolling and drying out, the road is opened  to the traffic. 

Types of drawings in any construction project:

Types of drawings in any construction project: 1. IFC Drawing: Detailed drawings considered final, issued, and approved by the design team f...